ऑस्ट्रेलिया समेत दुनियाभर में साइबर धोखाधड़ी के मामलों में लगातार वृद्धि हो रही है। ये घटनाएं अब पारंपरिक फिशिंग ईमेल या नकली ऐप्स तक सीमित नहीं रहीं, बल्कि अब अपराधी डिजिटल और असली दुनिया के हथकंडों का ऐसा मेल कर रहे हैं कि आम लोग मिनटों में अपने खाते से हजारों की रकम गंवा रहे हैं — और उन्हें इसका आभास तक नहीं होता।
हाल ही में ऑस्ट्रेलिया में एक मामला सामने आया जहां एक व्यक्ति से बैंककर्मी बनकर पासकोड पूछा गया और उसकी जानकारी के आधार पर खाते से करीब 6,000 ऑस्ट्रेलियाई डॉलर निकाल लिए गए। पीड़ित ने जैसे ही बैंक से शिकायत की, बैंक ने यह कहकर भरपाई से इनकार कर दिया कि उसने स्वेच्छा से ओटीपी साझा करके नियमों का उल्लंघन किया है।
जाल फंसता है डाटा चोरी से
इन अपराधों की शुरुआत आमतौर पर डाटा चोरी से होती है। कभी बड़ी कंपनियों से डाटा लीक हो जाता है, जैसे हाल ही में Qantas एयरलाइन से 57 लाख ग्राहकों की जानकारी लीक हुई। ये डाटा फिर तीसरे पक्ष को बेच दिया जाता है — जिसमें नाम, ईमेल, फोन नंबर और कार्ड की जानकारी तक शामिल होती है।
इसके बाद अपराधी फोन या मैसेज के जरिए संपर्क करते हैं, कॉलर आईडी भी असली लगती है, और बातचीत बैंक अधिकारी जैसी होती है। वो ग्राहक पर जल्द पहचान सत्यापन का दबाव डालते हैं। इसी हड़बड़ी में लोग ओटीपी या पासकोड साझा कर बैठते हैं — और यहीं से उनका खाता खाली हो जाता है।
क्या करें ऐसे मामलों से बचने के लिए?
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किसी भी स्थिति में फोन पर ओटीपी या सुरक्षा कोड साझा न करें, चाहे कॉल करने वाला व्यक्ति असली ही क्यों न लगे।
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संदेह होने पर तुरंत कॉल काटें और कार्ड पर दिए गए नंबर पर स्वयं बैंक को संपर्क करें।
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अपनी व्यक्तिगत जानकारी, खासकर सोशल मीडिया या वेबसाइट पर, सोच-समझकर साझा करें।
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सिर्फ वही जानकारी सार्वजनिक करें, जिससे किसी तरह का वित्तीय खतरा न हो।
सिर्फ सतर्कता नहीं, बदलाव भी जरूरी
विशेषज्ञों के अनुसार, इस बढ़ती समस्या से निपटने के लिए बैंकों और संस्थानों को अपनी पहचान सत्यापन प्रणाली को मजबूत करना होगा। सिर्फ एसएमएस कोड पर भरोसा करना अब सुरक्षित नहीं रहा। डाटा बेचने और साझा करने वाले प्लेटफॉर्म्स पर भी सख्त निगरानी और पारदर्शिता की जरूरत है।
इसके साथ ही, जब धोखाधड़ी के भौतिक प्रमाण मौजूद हों, तो पुलिस और कानून प्रवर्तन एजेंसियों को त्वरित और कठोर कार्रवाई करनी चाहिए। बैंकों को भी अपनी संचार प्रणाली पर पुनर्विचार कर यह सुनिश्चित करना होगा कि ग्राहक धोखे का शिकार न हों।