बेंगलुरु, जुलाई 2025:
कर्नाटक हाई कोर्ट ने राज्य के सीबीएसई और सीआईएससीई स्कूलों में कन्नड़ भाषा की अनिवार्यता को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर राज्य सरकार से जवाब मांगा है। कोर्ट ने सरकार को अपना पक्ष रखने के लिए अधिकतम तीन सप्ताह का समय दिया है।
यह याचिका प्रदेशभर के छात्रों के अभिभावकों द्वारा 2023 में दायर की गई थी, जिसमें कन्नड़ भाषा को स्कूलों में अनिवार्य करने वाले कानूनों और नियमों को असंवैधानिक बताते हुए चुनौती दी गई है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश वी. कामेश्वर राव और न्यायमूर्ति सी. एम. जोशी की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि सरकार दो वर्षों से अधिक समय से जवाब दाखिल करने में विफल रही है। कोर्ट ने चेतावनी दी, “अपनी मशीनरी तैयार करो, अन्यथा हम अंतरिम राहत के आवेदन पर विचार करेंगे।”
याचिका में इन कानूनों को दी गई चुनौती:
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कन्नड़ भाषा शिक्षण अधिनियम, 2015
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कन्नड़ भाषा शिक्षण नियम, 2017
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कर्नाटक शैक्षणिक संस्थान (एनओसी और नियंत्रण) नियम, 2022
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि ये प्रावधान छात्रों के पहली, दूसरी और तीसरी भाषा चुनने के अधिकारों का हनन करते हैं। उनका दावा है कि इससे शैक्षणिक प्रदर्शन, रोजगार अवसर और शिक्षकों की आजीविका पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है।
उन्होंने यह भी कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 किसी भी भाषा को जबरन थोपने का समर्थन नहीं करती और इससे पहले भी उच्च न्यायालय डिग्री पाठ्यक्रमों में कन्नड़ अनिवार्यता पर रोक लगा चुका है।
याचिकाकर्ताओं ने यह भी दावा किया कि उक्त अधिनियम और नियम कर्नाटक शिक्षा अधिनियम, 1983 की सीमा से बाहर जाकर बनाए गए हैं, और इन्हें सीबीएसई तथा सीआईएससीई जैसे राष्ट्रीय बोर्ड के स्कूलों पर जबरन लागू किया जा रहा है, जो कि अनुचित है।
अब सभी की निगाहें राज्य सरकार के जवाब पर टिकी हैं, जो कोर्ट के निर्देशानुसार आगामी तीन सप्ताह में दाखिल किया जाना है।