“एक राष्ट्र, एक चुनाव” विषय पर विधिक विचारगोष्ठी का सफल आयोजन

भारतीय जनता पार्टी विधिक प्रकोष्ठ, सरगुजा द्वारा जिला न्यायालय परिसर अंबिकापुर में “एक राष्ट्र, एक चुनाव” विषय पर एक विशेष विधिक विचारगोष्ठी का आयोजन किया गया।

यह संगोष्ठी भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली में प्रस्तावित महत्वपूर्ण चुनावी सुधार—लोकसभा एवं राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने की संकल्पना—पर आधारित रही। इसका उद्देश्य इस विचार से जुड़े संवैधानिक प्रावधानों, प्रशासनिक संरचनाओं, राजनीतिक व्यावहारिकताओं एवं सामाजिक प्रभावों पर विधिक दृष्टिकोण से गहन चर्चा करना था।


गोष्ठी के मुख्य वक्ताओं में वरिष्ठ अधिवक्ताओं श्री अशोक दुबे, श्री संजय अंबष्ट, श्री अरुण वर्मा, तथा श्री सुरेंद्र पाण्डेय ने अपने सटीक, तथ्यपरक और विचारोत्तेजक वक्तव्यों से कार्यक्रम को समृद्ध किया।

वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक दुबे ने कहा, “भारत जैसे विशाल लोकतंत्र में बार-बार चुनाव आचार संहिता की बाध्यता के कारण प्रशासनिक और विकासात्मक स्थिरता पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। एक राष्ट्र, एक चुनाव से यह असंतुलन समाप्त हो सकता है।”

संजय अंबष्ट ने अपने वक्तव्य में कहा, “यह संकल्पना सिर्फ एक प्रशासनिक सुधार नहीं, बल्कि लोकतंत्र को प्रभावी और अर्थव्यवस्था को सशक्त करने की दिशा में बड़ा कदम है। संविधान संशोधन की स्पष्ट रूपरेखा तैयार कर इसे व्यवहारिक बनाया जा सकता है।”

अरुण वर्मा ने कहा, “हमारा संविधान समयानुकूल व्याख्या और सुधार की अनुमति देता है। एक साथ चुनाव कराने की दिशा में विधिक और राजनीतिक इच्छाशक्ति दोनों जरूरी हैं।”

सुरेंद्र पाण्डेय ने विषय के सामाजिक पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए कहा, “बार-बार चुनाव राजनीतिक ध्रुवीकरण बढ़ाते हैं। एक साथ चुनाव राष्ट्र में स्थायित्व और सामाजिक सौहार्द की भावना को मजबूत करेंगे।”

कार्यक्रम का संचालन धनंजय मिश्रा द्वारा कुशलतापूर्वक किया गया तथा आभार प्रदर्शन जन्मेजय पाण्डेय ने किया।

इस अवसर पर बड़ी संख्या में अधिवक्ता, पक्षकार एवं गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे, जिनमें विद्यानंद मिश्रा, श्रवण गुप्ता, मनोज तिवारी, श्यामलाल गुप्ता, विवेक पाण्डेय, अमरेंद्र गुप्ता, आशा तिवारी, रेखा सोनी, उदय सिन्हा, धनी राम यादव, राजकुमार गुप्ता, शिवपूजन प्रजापति, सरिता पांडे, आशा जायसवाल,अभिषेक कश्यप, विद्याभूषण एवं अन्य अनेक सम्मानित अधिवक्ता सम्मिलित थे।

यह आयोजन भाजपा विधिक प्रकोष्ठ, सरगुजा द्वारा राष्ट्रहित में चल रहे विमर्श को स्थानीय विधिक समुदाय के बीच सशक्त करने और लोकतांत्रिक सुधारों की दिशा में सार्थक संवाद स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल रही।

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