योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण के लीला प्रसंगों से, धार्मिक व पौराणिक साहित्य आच्छादित है।इन साहित्यों के अतिरिक्त श्री कृष्ण एक मात्र ऐसे देवता हैं,जिनका उल्लेख राजनीतिक ग्रंथों में भी है, चाणक्य ने अपनी राजनीतिक रचना "अर्थशास्त्र"में कृष्ण को कलयुग का एकमात्र देवता कहा है।
वस्तुतः कृष्ण एक चरित्र से अधिक एक नीति है, जिससे विश्व में मानवता और शांति में साम्य रखा जा सके।
उनका जीवन आरंभ से ही रोमांचकारी खतरों व संकटों में व्यतीत हुआ। उनके बाल चरित्र को सूरदास,रहीम,जैसे भक्त कवियों ने श्रद्धापूर्ण ढंग से अभिव्यक्त किया है।
लेकिन मुझे उनके बाल चरित्र के कुछ प्रसंगों जैसे,मटकी फोड़ने,रास लीला इत्यादि ढंग को गलत दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया है पर आपत्ति है, जिसमें वालीवुड का प्रमुख योगदान है।श्री कृष्ण के बाल चरित्र में मटकी फोड़ने व मक्खन चोरी को बहुत ही ओछे ढंग से दिखाया जाता है।जबकि उद्देश्य था अत्याचारी राजा कंस उनके (गोकुल) के ही अर्थ से उन पर अत्याचार न करें अथवा किसी भी घातक रूप में प्रयोग न करें,जैसा आज भी होता है? अतः मटकी फोड़ना "आर्थिक नाकेबंदी"थी, यानी शत्रु के आर्थिक स्रोत्र को काटना।
भगवान श्रीकृष्ण की रासलीला को गलत दिखाया जाता है, जैसे एक फिल्म में सलमान खान गाता है "वो करें तो रासलीला,हम करें तो करेक्टर ढीला"। और हमारी खामी की हम इस मूर्खता पर , अपनी आस्था जनित श्रद्धा पर निर्मम प्रहार भी मनोरंजन के नाम पर झेल जाते हैं।
रासलीला का अर्थ ईश्वरीय प्रेम में
शरीर की सुध भूलना, जैसे उद्भट ज्ञान के कारण ही जनक जी के "विदेह"अर्थात मुक्त अवस्था, और भौतिक मृत्यु भय से विरक्त एक आध्यात्मिक जागरण की स्थिति। लेकिन सहज मानवीय दृष्टि से दुष्ट कंस अत्याचार से आध्यात्मिक भयमुक्ति, क्योंकि भयमुक्त्ता के लिए आध्यात्मिकता अनिवार्य है।
कृष्ण राजनीति के अद्वितीय व अनिर्वचनीय व्यक्तित्व है। महाभारत युद्ध के पूर्व से ही उनकी कूटनीतिक का प्रादुर्भाव यवनराज को युद्ध के मैदान से भाग उससे उसकी मृत्यु मुचकुंद ऋषि के पास पहुचा कर मुचकुंद ही सोए/छिपे हुए कृष्ण है।
प्रर्दशित कर यवनराज को भस्म करवा देते हैं। किसी की अच्छाई (वरदान)किसी को लिए मृत्यु (श्राप)का कारण सिद्ध हो सकती है,यह श्रीकृष्ण से अधिक किसे पता।
शांति के लिए पूरे राज्य, फिर आधा राज्य अंततः पांच गांव में संतुष्ट होने वाले, श्रीकृष्ण वस्तुतः यह संदेश देते हैं कि अंतिम समय तक शांति का प्रयास और अंततः शांति की स्थापना के लिए युद्ध।
शत्रु के बलाबल का आंकलन,उसकी शक्ति के साथ उसके हथियारों का भी भेद आवश्यक होता है।कर्ण द्वारा कवच कुंडल देने पर इंद्र के द्वारा कर्ण को दिए गए अमोघ भाले को, अर्जुन पर प्रयुक्त करने की कर्ण की मंशा को महाबली घटोत्कच पर प्रयुक्त करा अर्जुन को बचा लेते हैं।
क्यूंकि महाभारत के युद्ध अर्जुन को सिर्फ कर्ण से ही खतरा था। इसलिए युद्ध के महत्वपूर्ण समय में ही शत्रु का मनोबल तोड़ना और मानसिक रूप से कमजोर करना सर्वोत्तम कूटनीतिक होती है।
कर्ण के पास जाकर यह रहस्योद्घाटन करना की वह सूतपुत्र न हो कर कुंती का पुत्र है,वह यधुष्ठिर का श्रेष्ठ भ्राता है,
इसलिए युधिष्ठिर कर्ण को सहज ही हस्तिनापुर का सम्राट बना देंगे, इसलिए वे कर्ण को यह भी प्रेरित करते हैं कि,वह दुर्योधन को युद्ध बंद करने के लिए राजी कर सकता है।यह एक त्रिस्तरीय कूटनीतिक थी जिसमें रिश्ते,लोभ,व शांति की त्रिवेणी थी, जिसका परिणाम यह हुआ की श्रीकृष्ण ने कर्ण के नैतिक बल को कम कर दिया।
जहां तक भीष्म वध का प्रसंग है
वहां बस यही बात प्रगट होती है, शत्रु
पर करारा प्रहार उसकी कमजोरी पर करना चाहिए, जैसे की विशालकाय हाथी के नन्हीं चींटी प्राणघातक होती है। वैसे श्रीकृष्ण के बारे में पूर्ण लिखना मानवीय क्षमतातीत है।
महाभारत युद्ध के बाद जब धृतराष्ट्र
गले लगाने के बहाने महाबली भीम को
मारना चाहते हैं तो कृष्ण भीम के आदम कद लौह प्रतिमा आगे सरका देते हैं,जिसे गले लगाते ही धृतराष्ट्र भीम समझ चकनाचूर कर देते हैं।भेद प्रगट होने पर अंतोगत्वा अपनी कुत्तिस
भावनाओं को स्वमेव प्रगट कर देता है।
इसलिए राजनीति गलियारों में यह कहावत आज भी युवा है कि "जब छल का धृतराष्ट्र आलिंगन करे तो भीम का पुतला आगे सरका दीजिए"।
श्रीकृष्ण के पूरे चरित्र में एक बात
जो बहुधा दिखाई पड़ती है,वह हैं "अहिंसा परमो धर्म, धर्म हिंसा तथैवच"
जैसे कृष्ण को मारने आई पूतना उन्हें दुग्धपान करा उन्हें मारना चाहतीं थीं, स्तन पर विष लपेटे पूतना का स्तनपान कर उसकी इच्छापूर्ति भी करते हैं, और अपने शत्रु के रूप में उस राक्षसी का प्राणांत भी करते हैं।इस नीति की झलक शिवाजी की नीति
का प्रयोग धूर्त अफजल खां से साथ कर उसके मनसूबे पर पानी फेर दिया,
आज भारत को भी इसी नीति की आवश्यकता है।
।। मनोज कुमार सिंह।।
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