🗓️ 06 जुलाई 2025
नई दिल्ली। बिहार में चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूची की विशेष जांच (Special Intensive Revision) के आदेश को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। इस मामले में तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। याचिका में उन्होंने इस आदेश को असंवैधानिक करार देते हुए इसे रद्द करने की मांग की है।
📋 क्या है चुनाव आयोग का आदेश?
चुनाव आयोग ने 24 जून 2025 को आदेश जारी किया कि बिहार में सभी मतदाताओं की पात्रता की गहन जांच की जाएगी। इसके तहत उन लोगों को भी नागरिकता के दस्तावेज दिखाने होंगे जो पहले से वोटर लिस्ट में हैं और जिन्होंने कई बार मतदान किया है। इसमें माता-पिता की नागरिकता के प्रमाण पत्र जैसी जानकारी भी मांगी गई है। यदि निर्धारित समय—25 जुलाई 2025—तक आवश्यक दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किए गए, तो ऐसे नामों को वोटर लिस्ट से हटा दिया जाएगा।
⚖️ महुआ मोइत्रा की आपत्तियां
महुआ मोइत्रा की याचिका में कई गंभीर आपत्तियां उठाई गई हैं:
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मताधिकार का हनन: याचिका में कहा गया है कि यह आदेश संविधान के अनुच्छेद 14, 19(1)(ए), 21, 325 और 326 का उल्लंघन करता है। इससे लाखों वैध नागरिकों का वोट देने का अधिकार छिन सकता है।
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पहले से सूचीबद्ध मतदाताओं से पुनः प्रमाण: याचिका में सवाल उठाया गया है कि जिन लोगों के नाम पहले से सूची में हैं और जिन्होंने बार-बार वोट दिया है, उनसे दोबारा दस्तावेज क्यों मांगे जा रहे हैं?
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आधार-राशन कार्ड अस्वीकार: आयोग ने आधार कार्ड और राशन कार्ड जैसे सामान्य पहचान पत्रों को स्वीकार नहीं किया है, जिससे गरीब और असंगठित वर्गों को परेशानी हो रही है।
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एनआरसी जैसी प्रक्रिया: मोइत्रा ने इस जांच की तुलना असम में लागू हुए विवादास्पद NRC से की है, जिसकी पूरे देश में आलोचना हुई थी।
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अल्प समय सीमा: दस्तावेज जमा करने की अंतिम तारीख 25 जुलाई तय की गई है, जिसे अव्यवहारिक बताया गया है।
🌍 क्या दूसरे राज्यों पर भी असर पड़ेगा?
महुआ मोइत्रा ने आशंका जताई है कि चुनाव आयोग पश्चिम बंगाल सहित अन्य राज्यों में भी इसी तरह की प्रक्रिया शुरू कर सकता है। उन्होंने कोर्ट से यह भी आग्रह किया है कि आयोग को अन्य राज्यों में ऐसा आदेश जारी करने से रोका जाए। बताया गया है कि अगस्त 2025 से पश्चिम बंगाल में भी ऐसी जांच शुरू होने की संभावना है।
⚖️ क्या बोले वकील?
महुआ मोइत्रा की ओर से यह याचिका वकील नेहा राठी ने दायर की है। याचिका पर जल्द सुनवाई की उम्मीद जताई जा रही है। अब देखना यह होगा कि सुप्रीम कोर्ट इस संवेदनशील मुद्दे पर क्या रुख अपनाता है।
📝 निष्कर्ष:
बिहार में मतदाता सूची की जांच को लेकर राजनीतिक और संवैधानिक बहस छिड़ गई है। क्या यह लोकतंत्र की सुरक्षा के नाम पर वोटिंग अधिकारों का दमन है या निष्पक्ष चुनाव की ओर एक कदम? इसका फैसला सुप्रीम कोर्ट के फैसले से तय होगा।