मैनपाट कार्निवल
प्रति वर्ष की भांति इस बार भी मैनपाट कार्निवल महोत्सव का आयोजन हो रहा है।रमन सिंह सरकार के शासनकाल में शुरू यह महोत्सव अपने आप में लोककला, संस्कृति व उनके प्रसार और उसके आदर्शों के संरक्षण व संवर्धन पर आधारित की गई थी।
इस महोत्सव को लोकप्रियता और जनसमर्थन अवश्यमेव प्राप्त है। बावजूद इसके कार्निवल एक वाणिज्यिक, मनोरंजक व राजनैतिक स्थल अधिक है, सांस्कृतिक स्थल कम दिखता है, जबकि यह महोत्सव संस्कृति मंत्रालय द्वारा आयोजित किया जाता है।यह महोत्सव शानदार अपनी 20वर्षीय की यात्रा के दौरान राह भटका है?हद तो तब हो जाती है जब पूर्व सरकार के मंत्री कार्निवल को अपने पुत्र के विवाहोपरांत प्रीतिभोज में तब्दील कर देते हैं। जहां राममंदिर का निर्माण और प्राण-प्रतिष्ठा कर केंद्रीय सरकार भारतीय सांस्कृतिक गौरव की पुनर्स्थापना करती है,वही दूसरी ओर राम वन गमन पथ के तट पर आयोजित कार्निवल क्षेत्रीय लोक संगीत,व लोककथाओं का आकर्षक मंचन नहीं करती जितना कि बालीवुड और भोजपुरी कलाकारों का करती हैं। यहां कई बार संस्कृति का सामूहिक अवमूल्यन देखा गया है।आज यह
महोत्सव फिल्म उद्योग की एक शाखा की तरह दिखती हैं। फिल्मी गायकों और क्षेत्रीय गायकों को आमंत्रित करना निंदनीय कदापि नहीं लेकिन क्षेत्रीय लोक गीतों व नृत्यों की भागीदारी नण्य होना प्रशंसनीय भी तो नहीं कही जा सकती है। कार्निवल का महोत्सव आसपास के रेहड़ी व्यवसायियों के लिए एक आर्थिक अवसर अवश्य उपलब्ध करवाता है।
कार्निवल अपने शुरुआती दौर से ही जनाकर्षण का केंद्र रहा, यहां विदेशी कलाकारों को भी आमंत्रित किया गया रूस से बेली डांस की नृत्यांगनाओं को भी बुलाया गया,यह देखकर ऐसा लगता था कि,भारत की रूस के साथ आधुनिक सांस्कृतिक कूटनीति की शुरुआत मैनपाट कार्निवल से ही हो रही है?या पंचशील नीति का पुनर्जागरण हो रहा है?यकीन मानिए महोत्सव की भद्द पिट गई थी। भोजपुरी गायकों के गानों में यहां मनोरंजन और मर्यादा का भेद मिटते भी देखा जा सकता है।
कार्निवल महोत्सव के उद्देश्य में कोई कमी नहीं है,कमी केवल महोत्सव का निरापद बन कर रह जाना है।
कभी भी इस महोत्सव की भूमिका व लक्ष्य का प्रकाशन या प्रसार नहीं किया गया की महोत्सव किन उद्देश्यों से प्रेरित है,जैसा की हम रामगढ़ महोत्सव के बारे समझते और जानते हैं?
आयोजन समिति को कार्निवल में रामलीला का आयोजन किया जाना चाहिए जोअनुकरणीय भी है , क्योंकि सांस्कृतिक चेतना किसी भी राष्ट्र के जीवन के लिए प्राणवायु की तरह होती हैं । इसी कारण भारत सैकड़ों विदेशी आक्रमणों के बाद भी जीवित हैं, जबकि यूनान,फारस और मेसोपोटामिया जैसी सभ्यताएं अपना नामोनिशान खो बैठी। इसलिए छत्तीसगढ़ के नये मुख्यमंत्री से यह उम्मीद की वे राष्ट्रीय, सांस्कृतिक, सामाजिक और युवा जागृति हेतु कार्निवाल समारोह को नवीनता और नूतनता को स्वीकार और प्रचलित करेंगे आवश्यक है।
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