क्या इतिहास खुद को दोहरा रहा है? रूस ने तालिबान को दी मान्यता, अमेरिका-इजरायल के खिलाफ नया मोर्चा खुला?

 नई दिल्ली, 6 जुलाई 2025

जर्मन दार्शनिक फ्रेडरिक हीगल ने कहा था—“The only thing we learn from history is we learn nothing from history”। यह कथन आज की वैश्विक राजनीति पर सटीक बैठता है। अफगानिस्तान में रूस के एक अप्रत्याशित फैसले ने एक बार फिर भू-राजनीतिक समीकरणों को हिला दिया है। रूस, तालिबान की सरकार को मान्यता देने वाला पहला बड़ा देश बन गया है। इसके बाद अटकलें तेज हैं कि भारत भी जल्द कोई बड़ा कूटनीतिक फैसला ले सकता है।

🔁 इतिहास का रोल रिवर्सल?

80 के दशक में सोवियत फौजों को अफगानिस्तान से बाहर करने के लिए अमेरिका और पाकिस्तान ने मिलकर तालिबान को खड़ा किया था। अब वही तालिबान, रूस और चीन के पाले में आकर अमेरिका-इजरायल के खिलाफ इस्तेमाल होने की संभावना जताई जा रही है। इसे ‘इतिहास का रोल रिवर्सल’ कहें या ‘कोर्स करेक्शन’, लेकिन तस्वीर साफ है कि वैश्विक राजनीति में बड़े बदलाव की आहट है।



🏴‍☠️ रूस-तालिबान की मुलाकात और मान्यता

3 जुलाई को काबुल में अफगान विदेश मंत्री मौलवी आमिर खान मुत्ताकी और रूस के राजदूत दिमित्री जेनरोव के बीच बैठक हुई। इस दौरान रूस ने आधिकारिक रूप से तालिबान की इस्लामिक अमीरात ऑफ अफगानिस्तान को मान्यता देने की घोषणा की। रूसी एजेंसी TASS ने मॉस्को स्थित अफगान एंबेसी पर तालिबान का झंडा फहराते हुए तस्वीरें भी जारी की हैं।


🧠 रूस का बड़ा जियोपॉलिटिकल गेम

पुतिन की यह रणनीति सिर्फ अफगानिस्तान तक सीमित नहीं है। यह अमेरिका को उसी की चाल में फंसाने की एक योजना प्रतीत हो रही है। याद रहे, तालिबान का गठन अमेरिका-पाकिस्तान के गठजोड़ ने सोवियत के खिलाफ किया था। अब वही तालिबान रूस की गोद में आ बैठा है। अफगानों के एक तबके में यह भावनाएं गहराती जा रही हैं कि वे अतीत में अमेरिका के लिए सिर्फ मोहरे थे।


🇺🇸 अमेरिका की पुरानी चाल और अब का जवाब

1980 के दशक में अमेरिका ने पाकिस्तान और सऊदी अरब के साथ मिलकर तालिबान को ताकत दी थी। हजारों मदरसों में जेहादी विचारधारा को फैलाया गया। फिर जब काम निकल गया तो 9/11 के बाद अमेरिका ने इन्हीं तालिबानियों को आतंकवादी घोषित कर दिया और अफगानिस्तान पर हमला बोला।


🌍 नया समीकरण बनता हुआ?

अब जो गठजोड़ बनता दिख रहा है, उसमें रूस, चीन, ईरान, नॉर्थ कोरिया और तालिबान-शासित अफगानिस्तान जैसे देश एक ध्रुव पर आते दिख रहे हैं। ये मिलकर अमेरिकी वर्चस्व को चुनौती देने की रणनीति बना रहे हैं। यह गठजोड़ अमेरिका और इजरायल को निशाना बना सकता है।


🇮🇳 भारत की स्थिर कूटनीति: न किसी गुट में, न किसी दबाव में

भारत की विदेश नीति शुरू से ही मल्टीपोलर वर्ल्ड और मल्टीलेटरल एंगेजमेंट पर आधारित रही है। भारत रूस का मित्र है, लेकिन अमेरिका और इजरायल से भी उसके मजबूत संबंध हैं। भारत का रुख स्पष्ट है—हम अपने हितों के अनुसार निर्णय लेते हैं, न कि किसी गुट के दबाव में। भारत ना तो रूस-अमेरिका की लड़ाई में पक्ष लेता है और ना ही इस्लाम बनाम यहूदी के नैरेटिव में उलझता है।


📌 निष्कर्ष:

रूस का तालिबान को मान्यता देना एक बड़ा जियोपॉलिटिकल मोड़ है, जिससे अमेरिका-इजरायल के लिए नई चुनौती खड़ी हो सकती है। हालांकि, भारत को अपने संतुलित दृष्टिकोण और राष्ट्रीय हितों की नीति से ही आगे बढ़ना होगा।

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