गांधी जयंती -विशेष
।। महात्मा गांधी एक, समालोचना।।
महात्मा गांधी एक महामानव है,एक विचार है,एक साहित्य है, और उससे भी कहीं अधिक गांधीजी, "गांधीवाद" है। गांधीजी समकालीन भारत ही नहीं विश्व के चुनिंदा महानतम व्यक्तियों में से हैं। भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के मार्गदर्शक और सर्वप्रमुख नेता थे,वे निश्चित तौर से महान थे, और तात्कालीन भारत के सर्व -आशा के केंद्र भी थे। लेकिन उनका राजनैतिक व राष्ट्रीय चरित्र में बहुधा परस्पर विरोधाभास देखने को मिलता है ।
गांधी जी के भारत पहुंचने से पूर्व, ही उनकी प्रसिद्धि, दक्षिण अफ्रीका में किए गए नागरिक आंदोलन के कारण भारत पहुंच चुकी थी।
इंग्लैंड से बैरिस्टर की पढ़ाई पूरी करने के बाद वे गुजराती मुसलमान व्यवसायी शेख अब्दुल्ला का मुकदमा लड़ने,ब्रिटिश शासित उपनिवेश दक्षिण अफ्रीका गये। जहां ट्रेन में प्रथम श्रेणी के डिब्बे का टिकट होने के बाद भी वे नस्लीय भेदभाव के शिकार हुए, यात्रा के दौरान 31/05/1893 को उनको पीटमेरित्जबर्ग रेलवे स्टेशन पर नीचे उतार दिया गया।यह पल गांधी जी के लिए सार्वजनिक, व्यक्तिगत और भारतीय तीनों तरीके से बेहद अपमानजनक था।
इस घटना ने बैरिस्टर मोहनदास करमचंद गांधी से महात्मा गांधी बनने का मार्ग प्रशस्त कर दिया । उन्होंने ने दक्षिण अफ्रीका में रह रहे भारतीयों को पंजीकरण कानून के विरुद्ध एकजुट किया, उन्होंने ने दक्षिण अफ्रीका में रहते हुए भारतीयों के प्रति हो रहे भेदभाव के खिलाफ भी आंदोलन चलाया, जिसमें महिला और पुरुष में सक्रियता से भाग लिया।
दक्षिण अफ्रीका में वे फीनिक्स आश्रम में ठहरे, दक्षिण अफ्रीका ने जर्मन मूल के मि०कालेनबाख उनके मित्र थे। यद्यपि दक्षिण अफ्रीका में गांधी के आंदोलन सफल रहे, और अपने ही देश में उनके द्वारा संचालित अनेक राष्ट्रीय आंदोलन असफल रहे जैसे क्यूं? जैसे असहयोग आंदोलन,व भारत छोड़ो आंदोलन प्रायः असफल रहे। कारण यह है कि वहां भारतीयों संगठित करना आसान था, भारतीयों की संख्या कम थी , वहां स्वतंत्रता जैसा कोई आंदोलन नहीं चलाना था।
सबसे महत्वपूर्ण बात की वहां हिंदू मुस्लिम जैसी कोई समस्या या मुद्दा का आभाव था। जबकि भारत में वृहद भू-भाग और विशाल जनता के मध्य आंदोलन संचालित करना था। भारत में राजनैतिक चुनौतियां भी थी, विरोध भी था, जबकि द०अफ्रीका में ऐसी परिस्थिति का आभाव था, वहां गांधी जी ने बोअर युद्ध में अंग्रेजों का समर्थन किया। हालांकि ब्रिटिश सरकार के प्रति उनकी प्रतिबद्धता व झुकाव सदैव जग जाहिर रही है। भगवद्गीता सदैव अपने पास रखने वाले महात्मा गांधी, अंग्रेजों के अत्याचार को सहने के लिए जनता व आंदोलनकारियों को प्रेरित किया। जबकि गीता में स्वयं श्री कृष्ण अर्जुन को अत्याचारियों और अधर्मीयों का नाश करने के लिए उपदेश दे रहे हैं ।
यह उनके चारित्रिक विरोधाभास का विस्मयकारी सत्य है। गांधी जी ने सदैव धार्मिक सौहार्द और कौमी एकता के समर्थक, रहे फिर देश के पराधीनता से लेकर स्वतन्त्रता के मध्य हिंदू मुस्लिम तनावों और दंगों में हमेशा हताहत हिंदूओं को सहनशीलता और शांति का संदेश क्यों दिया?प्रश्न यह भी है कि , क्यों राष्ट्रपिता तुर्की के शासन की खिलिअत समाप्ति जैसे अंतर्राष्ट्रीय मसले को भारत का मुद्दा बना दिया?
बहुत अधिक संभव है कि ख़िलाफत जैसे आंदोलन जिनका भारतीय पृष्ठभूमि से कोई सरोकार नहीं था, ने ही आधुनिक भारत में सांप्रदायिकता की जड़ों को सींचा हो? गांधीजी अंग्रेजों से सहानभूति रखते थे जो आजीवन रही। 1942में गांधी जी ने असहयोग आंदोलन संचालित किया, जिसमें सर्व प्रमुख "अंग्रेजों भारत छोड़ो" का नारा यूसुफ मेहर अली द्वारा गांधी जी को सुझाया गया था। जबकि अंग्रेजों के विरुद्ध गांधी भारत छोड़ो आंदोलन आरंभ कर चुके थे,1943 में पेशावर में जब गढ़वाल रेजीमेंट ने भीड़ पर गोली चलाने से इंकार कर दिया।
जिस पर कर्तव्य पालन न करने पर गांधी जी ने गढ़वाल रेजीमेंट के जवानों की निंदा कि। विदेशी शासन के विरुद्ध में अपनों पर गोलीबारी करने से इंकार करने पर, अपनों की निन्दा करने का यह अनोखा उदाहरण है। क्या कोई व्यक्ति शत्रु के विरूद्ध अपने उद्देश्य को मात्र शत्रु पर दया दिखाने के लिए अपने उद्देश्यों को ठुकरा सकता है?विभाजन के बाद भी अनशन कर
पाकिस्तान को पचपन करोड़ रुपए दिलाना एक उचित निर्णय नहीं था। रामराज्य की परिकल्पना में, "रिपु पर कृपा परम कदराई" की बात भी कही गई है, अर्थात शत्रु पर दया कायरता है।
अपने विरोधाभासों के बाद भी गांधी तात्कालीन भारत के सर्वेसर्वा थे। वे एक राजनैतिक, आध्यात्मिक नेता थे और समाज-सुधार भी थे।
उनके अनुशासनप्रियता,समय की पाबंदी, व फिजूलखर्ची रहित जीवन, से प्रेरणा ली जा सकती है। उनकी आत्म कथा "सत्य पर मेरे प्रयोग" को नोबेल पुरस्कार मिलना चाहिए था। लेकिन सत्य तो यह भी है कि गांधी की सफलता और असफलताओं ने भारत को व्यापक रूप से प्रभावित भी किया है।
।। मनोज कुमार सिंह ।।