।। कटाक्ष।।

राजनीति सड़क से संसद तक होनी चाहिए, राजनीति सड़क पर होनी चाहिए , राजनीति सड़क से हो,लेकिन सड़क छाप नहीं होनी चाहिए? पर हाय रे अंबिकापुर तेरी सड़कें,चाहे निगम की सड़कें हों,या राज्य मार्ग हो या फिर राष्ट्रीय राजमार्ग हो। अंबिकापुर के हाथों की लकीरों (सड़कों) पर उपेक्षा का मारक ग्रह बैठ गया है। चूंकि बात अंबिकापुर विशेष की है तो, यहां की सड़कों की सबसे अनोखी विशेषता है कि सड़कें बरसात में भाखड़ा नांगल बांध बन जाती हैं, और शेष समय मौत का कुओं की भूमिका में रहते हैं। मुद्दा विहिन अंबिकापुर की राजनीति के लिए यहां की सड़कें ही राजनीति मुद्दों का स्मारक है। 

सड़कों पर पड़े गर्तनुमा गड्ढों पर सांसद चिंतामणि और पूर्व उपमुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव राजनीतिक अभ्यास कर गए हैं। किसी के पास आश्वासन तो किसी के पास विरोध का हथियार था। लेकिन दाद देनी होगी मितभाषी,हितभाषी, अल्पभाषी व मधुभाषी सिंहदेव की जो निगम की सड़कों की दम तोड़ती आश को जीवन देने के बजाए समस्या की पूंछ को पकड़ कर यानि निगम क्षेत्र से लगे राष्ट्रीय राजमार्ग पर धरना प्रदर्शन करते हैं।यह निगम की उदासीनता को छिपा, या उससे लोगों ध्यान हटा राज्य सरकार के पालें में गेंद डालना है। इसे कहते है हींग लगे न फिटकरी और रंग चोखा। यकीन जानिए अंबिकापुर की सड़कें जानलेवा हो गई है, अतः शासन को बुद्धिमत्ता दिखाते हुए यहां कि सड़कों के किनारे एनडीएफ की बटालियन तैनात कर देना चाहिए? सड़कों की मरम्मत के लिए सत्ता पक्ष द्वारा भी अभी तक कोई उचित पहल नहीं की गई है।

  यद्यपि डा०रमन सिंह का शासनकाल सड़क निर्माण का स्वर्णकाल रहा है, निःसंदेह। सड़क निर्माण में रमन सिंह की तुलना मध्ययुगीन अफगान शासक "शेरशाह सूरी"से की जा सकती है।

  लेकिन आज यहां की सड़कों को पर बने गड्ढों को देखकर लगता है कि अंबिकापुर की सड़कों को मुंह का कैंसर हो गया है, लेकिन अंबिकापुर की राजनीतिक प्रयोगशाला में आश्वासन के अतिरिक्त इसकी कोई कीमोथेरेपी उपलब्ध नहीं है।

 (श्रीमती सीमा सिंह)

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