* कुछ ने कहा अभी रुको पूछकर बताता हूँ,
* कुछ ने कहा जानकारी नहीं, अध्यक्ष जी के साथ आया हूँ
* कईयों को दूसरे विकासखंड और ग्रामों से भी लाया गया लेकिन आने का कारण नहीं बता पाए
* कई तो कैमरा देखकर बचने की कोशिश करने लगे
अंबिकापुर / 16 जनवरी 2024: हसदेव बचाओ के नाम पर सरगुजा जिले मे बाहरी लोगों को लाकर स्थानीय आदिवासीयों के विकास में रोड़े डालना और बड़े खर्चे कर राजस्थान सरकार द्वारा लगाए गए करीब 50 लाख से ज्यादा पेड़ों को नजरांदाज कर गलत आँकड़े बताकर समाचार और सोशल मीडिया जगत के द्वारा राज्य को गुमराह करने का खेल अब दिन ब दिन सबको पता चलने लग गया है। ऐसे में खुले में राजनीतिज्ञों की चापलूसी कर रहे कुछ कथित अभियानकारीयों की चाल एक बार फिर उलटी हो गई है ।
दरअसल छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज, सरगुजा द्वारा 15 जनवरी 2024 को संभाग कार्यालय में आंदोलन करने पहुंचे ग्रामीणों को पता ही नहीं था कि वे किसके विरोध में आंदोलन करने पहुंचे हैं। सोमवार को जब मीडिया द्वारा उनसे पूछा गया कि वे किसलिए यहां आए हैं तो उनमें से ग्राम खलबा के रमेश, परसागुड़ी के मोतिराम ने बोला अभी रूको पूछकर बताता हूँ, सीतापुर के एक व्यक्ति ने कहा कि जानकारी नहीं है, एक अन्य राजपुर विकासखंड के घोरगड़ी गांव के पुरषोत्तम ने बताया कि वो समाज के अध्यक्ष के कहने पर यहां कुछ सुनने आए हैं। लेकिन कारण पूछने पर वहां आए दर्जनों ने इस विषय पर अपनी अनभिज्ञता जाहीर की और कैमरा तथा माइक से बचने की कोशिश करने लगे।
असल में सरगुजा जिले में राजस्थान राज्य सरकार के तीन विद्युत घरों में कोयले की आपूर्ति के लिए आवंटित खदान में कोल खनन के लिए जरूरी वानिकी जमीन में कुछ सौ पेड़ों के विदोहन का कार्य जिला प्रशासन के वानिकी विभाग द्वारा किया जा रहा है। किन्तु कुछ बाहरी एनजीओ द्वारा विदेशी ताकतों और राजनीतिक दबाव में बाहरी आदिवासियों को स्थानीय बता कर इसका विरोध किया जा रहा है। इस विरोध के कारण पिछले 12 वर्षों से चल रही खदान बीते छः महीने से जमीन न उपलब्ध होने के कारण बंद हो गई है। जिसका खामियाजा यहां कार्यरत 5000 से अधिक स्थानीय ग्रामीण युवाओं को उनका रोजगार छिन जाने और बेरोजगार होकर चुकाना पड़ रहा हैं।
इसके विपरीत गत सप्ताह गुरुवार को ग्राम साल्ही, परसा, बासन, शिवनगर, फतेहपुर, घाटबर्रा इत्यादि गांवों के सैकड़ों आदिवासी ग्रामीणों ने खदान को सुचारु रूप से चलाने और बाहरी एनजीओ का क्षेत्र में प्रवेश पर रोक लगाने की मांग की गई। इन ग्रामीणों ने कलेक्टोरेट परिसर में प्रवेश के दौरान बाहरी एनजीओ और छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन आलोक शुक्ला और खदान विरोधियों के खिलाफ जमकर मुर्दाबाद सहित अन्य विरोध के नारे लगाए।
इन सभी ग्रामीणों ने पीईकेबी खदान को जल्द और सुचारु रूप से चलाने को जिला कलेक्टर को ज्ञापन भी सौंपा है। खदान बंद होने से बेरोजगार हो चुके इन युवकों ने नव पदस्थ कलेक्टर श्री विलास भोसकर संदीपन से मुलाकात के दौरान अपनी बेरोजगारी की करुण व्यथा सुनाते हुए बताया कि, “हम सभी आवेदकगण खदान प्रभावित परिवार के सदस्य व आसपास के ग्रामीण हैं तथा अधिकतर लोग खदान में नौकरी करके अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं। लेकिन आलोक शुक्ला के बाहरी एनजीओ द्वारा बाहर से कुछ लोगों को लाकर और कांग्रेस पार्टी के कुछ नेताओं के साथ मिलकर एक बार फिर फर्जी आंदोलन छेड़कर पीईकेबी खदान के लिए हो रही कर्रवाई के विरुद्ध अभियान चलाया जा रहा है। जिसे करोड़ों रुपए देकर कई सोशल मीडिया टीम द्वारा वायरल कर क्षेत्र की एक मात्र खदान का विरोध करने की मुहिम जारी है। जबकि शीर्ष न्यायालय ने भी पीईकेबी खदान के संचालन की अनुमति दे दी है। इसके फलस्वरूप कई महीनों से पीईकेबी खदान को जमीन न उपलब्ध होने के कारण खदान में उत्पादन अब बंद हो गया है। नतीजतन अब उन्हें बेरोजगार होकर रोजी रोटी के लिए भटकना पड़ रहा है।“
ग्रामीणों ने श्री संदीपन से भी यह दरख्वास्त की है की रायपुर स्थित आलोक शुक्ला का एनजीओ निजी स्वार्थ के लिए आदिवासीयों के हितैषी होने का ढोंग कर रही है और हम सभी आदिवासी भाइयों के बीच फूट डाल कर हमें आपस में लड़ाने का प्रयास कर कर रही है जिससे हमारा यह शांति प्रिय क्षेत्र अब झगड़ों का गढ़ बनता जा रहा है। ये बाहरी एनजीओ विदेशी पैसे की ताकत से हमारे क्षेत्र को देश ही नहीं अपितु विदेशों में भी बदनाम कर रही है। इसलिए आलोक शुक्ला तथा आंदोलन के लिए बाहर से गाड़ियों में भरकर-भरभर कर लाए जाने वाले लोगों का प्रवेश हमारे क्षेत्र सहित पूरे छत्तीसगढ़ में प्रतिबंधित करने का आग्रह भी हमने किया है।
यह कोई इक्का दुक्का घटनाए नहीं है। जनवरी 7 को भी पर्यावरण के नाम काँग्रेस के दीपक बैज और उसका साथीदार आलोक शुक्ला ने सेंकड़ों महंगी गाड़िया से बाहरी लोगों को जुटाकर अम्बिकापुर मे प्रदर्शन किया। जैसे ही उनकी एयर कन्डिशनिंग गाडीओ और घरों के बारे मे स्थानीयों को पता चला है तबसे उन्होंने अब खदान विरोधियों को सवाल करना शुरू कर दिया है।
इन सब घटनाओं से अब यह बात साबित होता है, कि खदान के विरोधियों द्वारा पर्यावरण का मुद्दा बनाकर खदान का विरोध कराना महज एक फर्जी अभियान चलाया जा रहा है। जो अपने निजी स्वार्थवस बाहर से एक दिन की रोजी में कुछ मुट्ठी भर लोगों को बुलाकर कोल ब्लॉक के विरोध का विडिओ बनाकर उसे सोशल मीडिया में वाइरल कर दुनिया भर में बदनाम करने और विदेशों से मोटा पैसा हासिल करना ही है। इस तरह के कृत न सिर्फ भारत के प्रधानमंत्री की विकसित भारत के सपने का रोड़ा बनेंगे, बल्कि देश को बदनामी के कुएं में ढकेल कर देश विरोधी नीतियों में संलिप्तता से दुनिया में भारत का लोहा मानवाने की राह में सेंध साबित में अग्रसर होंगे। जिसे तत्काल रोका जाना चाहिए।
Tags
हसदेव